
कफ़ील खान को जमानत मिलने से खुशी तो हुई है पर अफसोस की एक फर्जी केस के सहारे रासुका जैसे गंभीर एक्ट लगाने और बेवजह सरकार द्वारा जेल में महीनों बंद रखने पर कुछ नहीं कहा गया।
AMU में कथित हिंसा भड़काने वाले वीडियो के आधार पर उन्हें 29 जनवरी को मुंबई से गिरफ्तार किया जाता है और 10 फरवरी को लोअर कोर्ट से जमानत भी मिल गया मगर योगी आदित्यनाथ का बदला यहीं पूरा नहीं हो जाता है। उसके खिलाफ बोलने की हिम्मत करने वाले कफील को 2018 में बिना किसी अपराध आठ महीने जेल में बन्द किया था, मगर उसकी जुबान बंद नहीं कर सके। सभी आरोपों में निर्दोष पाए जाने के बाद डॉक्टर कफील खान अपने खिलाफ हुए साजिश की कहानी देश भर में बताते रहें।
पिछले साल दिसम्बर में आए नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में आंदोलनों का दौर शुरू होता है जिसका असर यूपी में भी देखा गया। जिस व्यक्ति के लिए संविधान एक सुविधा का नाम हो उसे लोकतांत्रिक विरोध से डर लगता है और इसी डर को दूर करने के लिए वह दूसरों को डराने में लग जाता है। यही मामला यूपी में भी हुआ, कुछ हिंसक झड़पों के बाद मुख्यमंत्री आदित्यनाथ द्वारा चुन-चुनकर बदला लेने का ऐलान किया जाता है, फलस्वरूप पचासों जानें चली गई और लाखों करोड़ों की संपति भी लूटे गए।
डॉक्टर कफील CAA विरोधी आंदोलनों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और साथ ही साथ लोगों से शांतिपूर्वक विरोध का अपील भी करते रहें। वे लोगों को सरकार के दमनकारी चरित्र के बारे में आगाह करते रहे। 13 दिसम्बर को उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बोलने के लिए बुलाया जाता है जहां उन्होंने छात्रों के बीच एक बेहतरीन तरीके से बात करते हुए लोकतंत्र और संविधान को बचाने की अपील करते हैं।
15 दिसम्बर को इस भाषण को भड़काऊ बताते हुए उन पर धारा 153 ( सांप्रदायिक भाषण से शांति व्यवस्था भंग करना) एफआईआर दर्ज किया जाता है। इस में बताया गया कि उसने ” मोटा भाई” ” मुस्लिम विरोधी कानून” आदि जैसे भड़काऊ शब्दों का प्रयोग किया था। केस दर्ज होने के लगभग डेढ़ महीने बाद उन्हें मुंबई से अरेस्ट कर के लाया जाता है वह भी इस तरह से जैसे किसी हिस्ट्रीशीटर को पकड़ा गया हो।
विदित हो कि डॉक्टर कफील खान गोरोखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज मामले के व्हिसल ब्लोअर ( उद्भेदन कर्ता) है जिसने सरकार के गैरजिम्मेदारी की वजह से हुई बच्चो के मौत को सबके सामने लेकर आया था। इस मामले पर मीडिया और जनता का दबाव देख कर यूपी सरकार नौ लोगों को इसका जिम्मेदार मानते हुए केस दर्ज किया था।
29 जनवरी को अरेस्ट होने के ग्यारह दिनों बाद उसके जमानत का आदेश निचली अदालत द्वारा दिया जाता है लेकिन जेल गेट पर परिजन 72 घंटे तक उनके बाहर निकलने का इंतजार करते रहें और योगी सरकार उस आदेश को मजाक बनाने में कोई कसर नहीं रखा, न्यायलय को इतना लाचार देख कर हर कोई शर्मिंदा महसूस कर रहा था। उसी तीन दिनों के अंदर रासुका ( राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) लगा कर एक बार फिर जेल में डाल दिया गया।
रासुका पर सुनवाई करने के दौरान माननीय उच्च न्यायलय ने डॉ कफील के उस कथित भाषण को देश को जोड़ने वाला और लोकतंत्र के लिए मजबूत करने वाला बताते हुए रासुका हटाने का आदेश जारी करते हैं।
अब समय आ गया है जब सभी न्यायलय खुद अपने सिस्टम का आत्मावलोकन करे और उनके भूमिका को मजबूती से निभाए वरना जब भी लोकतंत्र पर हमला होगा उसका सबसे पहला शिकार यही न्यायपालिका होगा। जैसे हम माननीय मुख्य न्यायधीश के हार्ले डेविडसन मामले में देख चुके हैं। माननीय न्यायालय यह बताएं कि जब कोर्ट से जमानत आदेश दे दिया गया था फिर तीन दिनों तक वह आदेश किसके कहने पर रोका गया ? उनके आदेश की धज्जियां उड़ाने पर उनका क्या कहना है? सरकार द्वारा बदले कि भावना से की गई कार्यवाही पर उनका क्या कहना है? डॉक्टर कफील खान के अत्यंत महत्वपूर्ण आठ महीने को बर्बाद करने के लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा? ऐसे कई सावल और भी है जिन पर न्यायपालिका को सोंचना ही होगा वरना वह दिन दूर नहीं जब उन पर से लोगों का भरोसा टूटे और वे खुद इंसाफ करने बैठ जाएं।