अररिया गैंग रेप विक्टिम को मिली जमानत पर पत्रकार के शक्ति प्रदर्शन में न्यायपालिका की क्या है भूमिका?

एक पत्रकार की हैसियत से जो विनीत प्रकाश गैंग रेप पीड़ित का पहचान उजागर करता है अब उसे ही पैनल अधिवक्ता नियुक्त किया जाना कितना सही है? जबकि इस कथित पत्रकार द्वारा छापे गए खबर और एफआईआर का शब्दशः मिलान होना भी मामले को संदेहस्पद बनाता है। बचाव पक्ष का एक आरोप यह भी है की एफआईआर और खबर लिखने वाला कोई एक ही व्यक्ति है।
मालूम हो कि पीड़ित और उसकी मदद कर रही दो सामाजिक कार्यकर्ता को न्यायिक हिरासत मे भेजा जाने के मामले की गंभीरता को देखते हुए 17 जुलाई को सीजेएम कोर्ट द्वारा अपवाद स्वरूप जमानत याचिका पर सुनवाई करने का निर्णय लिया गया, बचाव पक्ष के अधिवक्ता देव नारायण सेन के सभी दलीलों को सुनने के बाद माननीय अदालत द्वारा पीड़िता को जमानत दे दिया जाता है मगर साथ ही अन्य दो साथियों की याचिका रद्द कर दिया गया।
यह खबर हिंदुस्तान अखबार के वेब पोर्टल पर देखा गया, इसमें बताया गया है की अभियुक्तों की ओर से आशीष रंजन द्वारा विधिक सहायता उपलब्ध करवाने के आवेदन को अदालत ने मंजूर कर लिया है तथा पैनल अधिवक्ता के तौर पर विनीत प्रकाश को नियुक्त किया गया है। इसी खबर में आगे पैनल अधिवक्ता के नियुक्ति की वजह दलसिंघसराय उपकारा के ईमेल से अभियुक्तों द्वारा विधिक सहायता के लिए किया गया आवेदन बता रहा है।

हमने जब आशीष रंजन से इस बारे में पूछा तो पता चला कि ये खबर पढ़ कर वे भी आश्चर्यचकित हैं क्योंकि उनके द्वारा विधिक सहायता के लिए ऐसा कोई आवेदन नहीं दिया गया है और न जेल से ईमेल द्वारा दिया है। जब हमने हिंदुस्तान वेब पोर्टल पर छपे रिपोर्ट का हवाला दिया तो वो बताते हैं ” यह खबर लिखे जाने से पहले उनसे कोई संपर्क नहीं किया गया था इसलिए वे हिंदुस्तान अखबार के कार्यालय मे फोन कर रिपोर्ट का खंडन कर चुके हैं और साथ ही भ्रामक खबर फैलाने का शिकायत भी किया है”

यह खबर 19 तारीख के अखबार में प्रकाशित हुआ है। आप देख सकते हैं की इसमें से आशीष रंजन द्वारा विधिक सहायता के आवेदन देने की बात नहीं है। मगर दलसिंहसराय उपकारा अधीक्षक के ईमेल से माध्यम से आवेदन दाखिल करने वाली बात ज्यों का त्यों रख छोड़ दिया है। इसके पीछे दो कारण हो सकता है, पहला कारण इसका खंडन करने के लिए वे अनुपलब्ध हैं और दूसरा कारण शायद पत्रकार सह अधिवक्ता विनीत प्रकाश के पिता एवं हिंदुस्तान खबर के पत्रकार विनोद प्रसाद ने कारा उपाधीक्षक से प्राप्त ईमेल आवेदन की कॉपी प्राप्त होना हो सकता है। शायद इसी वजह से विनीत प्रकाश का नाम हो। हालांकि बचाव पक्ष द्वारा सभी परिस्थिति को नकारा जा चुका है।

इस बारे में पड़ताल करने के लिए बेल ऑर्डर देखा तो पाया कि उसे माननीय न्यायालय द्वारा बतौर पैनल अधिवक्ता नियुक्त किया गया है, इसका मतलब माननीय अदालत द्वारा ईमेल आवेदन देखने के बाद ही ऐसा कदम उठाया गया होगा और आवेदन की कॉपी की मांग होने पर उपलब्ध भी करवाया जा सकता है ?
अब सवाल उठता है कि एक आदमी न्यायपालिका के कई पदों पर आसीन होते हुए भी बतौर विधि पत्रकार कैसे काम कर सकता है? क्या एक पत्रकार के मर्यादा का पालन हो पाएगा? मान लिया जाय की उसपे कभी अगर भ्रष्टाचार का आरोप लगे तो क्या कोई दूसरा पत्रकार उन अखबारों में रिपोर्ट कर पाएगा? क्या यह लाभ के पद का मामला नहीं है? क्या एक अधिवक्ता के हैसियत से वह अपनी पत्रकारिता से माननीय न्यायधीशों को खुश करने की कोशिश नहीं करता होगा?
एक पत्रकार की निष्पक्षता ही उसके विश्वसनीयता का द्योतक होता है। मगर एक पत्रकार और अधिवक्ता का बेमेल मिश्रण किसी के लिए प्राण घातक भी हो सकता है।
पैनल अधिवक्ता किसे कहते हैं?
भारतीय न्याय प्रणाली हर किसी को अपना पक्ष अदालत के समक्ष रखने का अधिकार देता है अगर किसी कारणवश आरोपी खुद के लिए अधिवक्ता नियुक्त नहीं कर सके तो ऐसी स्थिति में वह विधिक सहायता दिए जाने का दरख्वास्त करने पर उसे पैनल में नामित वकीलों मे से किसी को मुहैय्या करवाया जाता है।