
बंगाल में चौथे चरण का मतदान हो चुका है और आगे चार चरण का मतदान होना बाकी है। चुनाव से जुड़ी तमाम तरह की बातें, बहसों के बीच कुछ बातें ऐसी भी निकल कर आ रही है जिसे दर्ज किया जाना जरूरी है और यही सोच कर इस पोस्ट को लिखने की जहमत उठा रहे है।
सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों के मार्फत से पता चला कि जिस तरह इस लड़ाई को टीएमसी बनाम भाजपा बनाने की कवायद शुरू हुई थी अब वह चौथे चरण तक आते आते दरकता दिख रहा है जबकि अभी चार चरणों में मतदान होना बाकी है।टीएमसी समर्थक मीडिया, सम्मानित बुद्धिजीवियों मे चिंता की लकीरें स्पष्ट देखी जा रही है, जो बंगाल के लोगों से किए जा रहे अपील में स्पष्ट देखा जा सकता है।
वर्तमान समय में हमारा सबसे बड़ा दुश्मन कौन है इसे लेकर जरा भी शंका नहीं है पर जो लड़ाई पहले टीएमसी बनाम संयुक्त मोर्चा के बीच थी अब वो आरएसएस ( टीएमसी+ बीजेपी) बनाम संयुक्त मोर्चा के बीच हो रही है।
संयुक्त मोर्चा बनाम बीजेपी/आरएसएस का मतलब है धर्म और पहचान की राजनीति के खिलाफ, कोरोना अव्यवस्था के खिलाफ, चुनाव वाले राज्यों में लोकल ट्रेन और बाकी राज्यों को सड़क पर छोड़ने जैसे मक्कारी के खिलाफ, देश की अर्थव्यवस्था को खाई में डालने के खिलाफ, नफरत का माहौल पैदा करने के खिलाफ, संवैधानिक संस्थाओं को जमींदोज करने के खिलाफ इत्यादि मुद्दों पर वोट का चोट मारना।
संयुक्त मोर्चा बनाम टीएमसी/आरएसएस का मतलब है शारदा, नारदा, अम्फान, नंदीग्राम नरसंहार, आरएसएस की जहरीली प्रयोगशाला में उत्तर बंगाल को धकेलना, चाय बागान मजदूरों के साथ वादाखिलाफी आदि जैसे ज्वलंत और अतिसंवेदनशील जनता के मुद्दों पर नाकामी के खिलाफ वोट करना है।
अब मेरा सवाल उन सम्मानित बुद्धिजीवियों से है जो कहते है की ” बंगाल में भाजपा जीतती है अगर तो सीपीएम को कभी माफ नहीं किया जायेगा”!
क्या यह सच नहीं है की आज बंगाल में जो आरएसएस इतनी ताकतवर बन चुकी है उसकी सैकड़ों इकाइयां स्थापित करने के पीछे ममता बनर्जी का हाथ है? क्या सीपीएम को हटाने में आरएसएस से मदद नहीं ली थी? क्या उन्होंने आरएसएस को देश भक्त संगठन का तमगा नहीं दिया था? क्या 2002 गुजरात दंगों के बावजूद भी वाजपेई सरकार में मंत्री पद पर वो बनी नहीं रहीं?
जिस प्रकार उत्तर दिनाजपुर, आलीपुरद्वार आदि उत्तर बंगाल के इलाकों में दोनों प्रमुख धर्मों के बीच जैसा माहौल भाजपा ने बनाया है अगर टीएमसी उसे रोक पाने में सक्षम नहीं था तो उसे अब सत्ता में रहने का भी कोई हक नहीं है।वैसे भी दीदी को अब बेड रेस्ट की जरूरत है।
” मां, माटी, मानुष के निये जा खेला कोरछेन दीदी सेई देखे एबार दीदी के रेस्ट देवार सोमॉय आछे”
जब सम्मानित बुद्धिजीवियों को कम्युनिस्टों के खिलाफ कुछ नही मिला तो ‘एकुसे राम, पोचीसे बाम’ जैसे फर्जी नैरेटिव गढ़ने लग गए हैं जिसका ओर छोड़ अब तक कोई नहीं ढूंढ पाया है। जब पूछा जाता है की ये बात किसने कही? क्या पार्टी पद पर बैठे किसी जिम्मेदार व्यक्ति ने ऐसा कहा है? सूत्रों के हवाले से ही सही पर बताएं तो, क्या पार्टी के अंदर ऐसी चर्चा और रणनीति बनाएं जाने की जानकारी मिली है? मगर आप जवाब देने के बजाय अब्बास सिद्दकी के साथ गठबंधन पर सवाल खड़े कर देते हैं।
सबसे पहले तो आप जानिए की अब्बास सिद्दीकी है कौन! क्या आपके नजर में हर दाढ़ी टोपी वाला fundametalist है? अगर आपका जवाब हां में है तो मेरा सुझाव होगा, जितना जल्दी हो सके आप खुद के इस्लामोफोबिक होने की घोषणा कर दें। इतना महीन खेलने के चक्कर में टीएमसी हितैषी सम्मानित लिबरल खुद को ही एक्सपोज करते जा रहे हैं।
आज ओवैसी को एक्सपोज करने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो केवल अब्बास सिद्दीकी को जाता है। उनका संबंध फुरफूरा शरीफ नामक दरगाह से हैं जहां सभी धर्मों के लोग अपना शीश नवाने, किसी खास के लिए मन्नत मांगने जाते हैं। जो लोग ओवैसी के लिए सभी से सींग भिड़ाते घूम रहे थे, आप लोग कायदात की बात करते हैं मगर क्या उसमें बंगाली मुस्लिमों के लिए कोई जगह है? अगर है तो फिर आसनसोल दक्षिण से आईएसएफ के उम्मीदवार Mustaqim Siddiqui के खिलाफ एमआईएम क्यों उम्मीदवार खड़ा कर रहा है? ये कायदात का गाजर दिखाकर मुस्लिम युवाओं को बेवकूफ बनाने का काम किया गया है वो अब एक्सपोज होता जा रहा है। अब्बास सिद्दीकी ने वो कर दिखाया है जो आप लोग अभी तक सोच भी नही पाएं हैं। मगर इन सब बातों से आप लोगों को शायद ही फर्क पड़ता हो।
जब कोई जवाब देने नहीं सूझता है तो कहते हैं की सीपीएम के लोग ट्रोल कर रहें है। जबकि सच्चाई तो यह है कि टीएमसी और बीजेपी दोनों जैसा ट्रोल फैक्ट्री संयुक्त मोर्चा के पास न है और न कभी बनाने की इच्छा है। प्रशांत किशोर जैसे लोगों ने देश की राजनीति में ट्रोल संस्कृति का ईजाद किया था आज वो टीएमसी का आंखों का तारा बना हुआ है, उससे बड़ा ट्रोल मशीनरी किसी के पास हो सकता है?
इन तमाम तथ्यों को गौण कर आप बहुत शातिराना तरीके से मुख्य विपक्षी पार्टी को सीन से गायब करने की कोशिश करने में लगे हैं और फिर उन्हीं पर खुद की राजनीति लादते हुए कहते हैं “भाजपा अगर बंगाल में जीतती है तो सीपीएम को कभी माफ नहीं किया जाएगा!”
वाह! इसपर तो लगातार ताली बजनी चाहिए! है न?