
कुण्डली औधोगिक क्षेत्र में काम करने वाले मज़दूरों के हक़ की लड़ाई लड़ने वाले शिव कुमार के साथ हृदय विदारक हिंसा होने के प्रमाण मिले हैं, हरियाणा हाई कोर्ट के आदेश पर उन्हें चंडीगढ़ अस्पताल में भर्ती किए जाने के बाद ये सब बाहर निकल कर आ रहा है। चार पेज का मेडिकल रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टर की टीम में शामिल एक मनोचिकित्सक का कहना है की शिव कुमार Post traumatic stress disorder जैसे गम्भीर मानसिक परिस्थिति से जूझ रहे हैं। पुलिस हिरासत में उनके साथ बहुत भयावह बर्ताव किया गया है। 23 फ़रवरी को यह रिपोर्ट पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट में सोनीपत जेल सुप्रीडेंट द्वारा दाखिल किया गया है जहां उन्हें पिछले २३ दिनों से क़ैद कर के रखा गया था।
परिवार और वकील का कहना है की उसकी गिरफ़्तारी की अधिकारिक सूचना दिए जाने के हफ़्ते दिन पहले ही पुलिस द्वारा उन्हें उठाया गया था, यदि ये सच है तो इसका मतलब उसे सात दिनों तक अवैध रूप से हिरासत में रखा गया है। मेडिकल रिपोर्ट में चोट के बारे में बताया है ” सभी चोट लगभग दो हफ़्ते पहले के हैं और किसी भारी हथियार या वस्तु से हुआ है “
डॉक्टर की टीम में शामिल मनोचिकित्सक ने रिपोर्ट में लिखा है ” शिवा को बार बार उनके साथ हुई बर्बरता का ख़याल आता रहता है” जिस वजह से अनिंद्रा की भी दिक़्क़त से सामना करना पड़ रहा है, अपना बयान लिखवाते समय उस सदमे को याद कर कई बार रो पड़े थे।
अपने साथी और दलित कार्यकर्ता नोदीप कौर के साथ हिरासत में लिए गए शिवा का नाम एक भी पुलिस एफ़आईआर में दर्ज नहीं है। 12 जनवरी का दो एफ़आईआर नोदीप कौर को नामित करता हुए ग्यारह अलग अलग धाराओं में दर्ज किया गया है जिसमें रंगदारी और हत्या की कोशिश भी शामिल है। नोदीप के परिवार वालों ने भी पुलिस पर मारपीट और यौन हिंसा का आरोप लगाया है। सीमांचलनामा के एक रिपोर्ट में नोदीप कौर के मामले पर विस्तार से उल्लेख किया गया है।
शिवा के साथ हुए अत्याचारों की जानकारी अब तक सिर्फ़ अनुमानित ही लगाई जा रही थी क्योंकि पुलिस न ही उनके परिवार से और न क़ानूनी मदद करने वालों से मिलने दिया था, दो फ़रवरी से लेकर 20 फ़रवरी तक परिवार वालों और वकीलों द्वारा लगातार उनसे मिलने कि कोशिश करने के बावजूद नहीं मिलने दिया गया।
शिवा के वकील हरिंदर बैंस का कहना है की उनके मुवक्किल और नोदीप कौर को इसलिए गिरफ़्तार किया गया है क्योंकि वे बकाया मज़दूरी की माँग को लेकर कुण्डली में मज़दूरों को संगठित कर आंदोलन कर रहे थे। पुलिस ने शिवा को १० दिनों के रिमांड में लेने के लिए कोर्ट को बताया की उन्हें असम और बंगाल ले जाना ज़रूरी है ताकि केस का लिंक जोड़ सके। शिवा ने मेडिकल जाँच के दौरान बताया की रिमांड के दौरान 30 जनवरी को उसे लेकर वे लोग हरिद्वार गए और 2 फ़रवरी को वापस सोनीपत जेल में बंद कर दिया गया था।
शिवा और नोदीप जैसे पढ़े लिखे युवा मज़दूर से सरकार व उनके पूँजीपति मालिकों का ख़ौफ़ साफ़- साफ़ नज़र आता है। मज़दूर अधिकार संगठन के कार्यकर्ता किसान आंदोलन के समर्थन में पहले दिन से सिंघु बोर्डर पर जमें हुए हैं। यह सिर्फ़ वर्ग का मुद्दा ही नहीं बल्कि जाति का भी विषय है। सरकार को मालूम है की किसी दलित मज़दूर के साथ चाहे कोई भी अन्याय कर लो इससे वोट बैंक प्रभावित नहीं होंगे, उन्हें मालूम है की हिंदू मुस्लिम के नाम पर उन्हें दुबारा वोट मिलता रहेगा।”
एक दलित भूमिहीन खेत मज़दूर परिवार से शिव कुमार पार्ट टाइम गार्ड की नौकरी से ज़िंदगी शुरू किया था। आई॰टी॰आई सोनीपत से 2016 में पास करने के बाद वो दो साल कुण्डली के ही एक एलईडी लाइट, मोटर पार्ट्स बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते थे और उसी दौरान मालिकों के शोषण को देखकर 2018 में मजदूर अधिकार संगठन शुरू करते हैं।
12 जनवरी को कुण्डली इंडस्ट्री एरिया में नोदीप कौर और मजदूर अधिकार संगठन (MAS) के कुछ कार्यकर्ता मजदूरों को साथ लेकर बकाया भुगतान की मांग करते हुए फेक्ट्री मालिक के खिलाफ नारे लगाती है। उसी समय स्थानीय प्राइवेट सशस्त्र सेना और पुलिस के साथ उनकी थोड़ी कहा सुनी होती है। कुण्डली के अधिकांश फैक्ट्रियों के तरह ही उस फैक्ट्री में भी लॉकडाउन के समय से ही मजदूरों का बकाया नहीं दिया गया है। मगर फैक्ट्री मालिकों ने उन पर ही रंगदारी, हत्या की कोशिश का आरोप लगा दिया है।
हरियाणा पुलिस द्वारा नोदीप और ‘अज्ञात 50–60’ के खिलाफ तीन एफआईआर दर्ज किया गया, जिसमें बल प्रयोग करते हुए छीना झपटी, हत्या की कोशिश, रंगदारी जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं इन धाराओं में कम से कम दस साल सजा का प्रावधान है।
मगर किसी भी एफआईआर में शिव कुमार का नाम नहीं है, उन्हें सिंघू बॉर्डर से उठाया गया जहां किसानों का आंदोलन चल रहा है। यह सब नोदीप की गिरफ्तारी के चार दिनों के बाद किया गया।
पुलिस यातनाओं का असली खुलासा माननीय उच्च न्यायालय के आदेश पर

उनकी गिरफ्तारी की सूचना घर वालों को देना भी ज़रूरी नहीं समझा, यहां तक कि जब पिता राजबीर मिलने आए तो न उन्हें मिलने दिया और न ही उनके वकील से मिलने दिया गया, हाई कोर्ट में अपील करने के बाद मिलवाने का आदेश दिया और इस तरह अरेस्ट के चार हफ्ते बाद 20 फरवरी को पहली बार मिलने दिया गया। हाईकोर्ट के आदेश पर 23 फ़रवरी को उन्हें सोनीपत से चंडीगढ़ हॉस्पिटल लाया जाता है और इस तरह मेडिकल जाँच की प्रक्रिया पूरी हो सकी।
उनके दाएँ पाँव के तीन उँगलियों के नाखून उखड़े हुए हैं और पाँव बिलकुल सूजा हुआ देखा गया है, बाएँ पाँव की बड़ी उँगली नीले से काला हो चुका है, उनके जाँघों के काले धब्बों से पता चलता है कि उसे बेरहमी से पीटा गया है, उनके बाएँ हाथ का ज़ख़्म, बड़ी और छोटी उँगली के नाखूनों से “गंभीर ज़ख़्म” पाया है।
अस्पताल के इस रिपोर्ट में शिवा का बयान भी दर्ज है जिसमें वे शुरू से सभी घटनाओं को एक एक कर बताया है की किस तरह पुलिस हिरासत में उन्हें ये चोटें पहुँची है।
12 जनवरी को कुण्डली औधोगिक क्षेत्र के मेटल फ़ैक्टरी संख्या 349 के सामने हुए प्रदर्शन के दौरान वे वहाँ मौजूद नहीं थे। पुलिस का कहना है की उसे 23 जनवरी को गिरफ़्तार किया है मगर सच ये है कि उन्हें एक हफ़्ते पहले पुलिस ने उठवाया था और ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से अनजान जगह पर बंधक बना कर रखा था। वे बताते है की सोलह जनवरी को दोपहर तक़रीबन दो से ढाई बजे सिंघु बोर्डर से सात पुलिस वाले उन्हें गिरफ़्तार किया था। वहाँ से उन्हें ओल्ड कोर्ट कैम्पस के पास एक मकान में बंद कर देते हैं और यहीं अगले आठ दिनों तक पुलिस वालों द्वारा जघन्य तरीक़े से यातनाएँ दिया जाता है।
“वे लोग दोनों पाँव बांधकर ज़मीन पर लिटा देते थे और एड़ी पर नृशंस रूप से डंडे बरसा रहे थे, दाएँ पाँव के दूसरे, तीसरे और पाँचवें उँगली का नाखून उखाड़ देते हैं” जिस वजह से उनके पाँव में खून का थक्का जमा होकर काला होने की बात रिपोर्ट में दर्ज है। शिव कुमार उस पूछताछ को याद करते हुए कहा है कि ” वे पुलिस वाले किसी चौड़े पट्टेदार डंडे से चूतड़ों पर लगातार मारते हैं, फिर इनका हाथ बांध कर पैरों को फैलाते है जैसे की चीड़ देना चाहते हो और बाद में हाथों, हथेलियों, सिर के पीछे वाले हिस्से पर प्रहार करते। उन्हें ज़मीन पर झुक कर बैठने को कहा जाता और फिर एक लोहे के पाइप को दो लोग जाँघों पर रोल करते।
उन पुलिस वालों ने इन्हें लगातार तीन दिनों तक जगाए रखा, इन सबके बाद जब बयान दर्ज करते हुए अपने साथ शामिल अन्य साथियों को नाम लेने को कहा जाता है, जब जवाब नहीं मिला तो उसे कुर्सी पर बिठाकर बाँधा गया और सिर पर लगातार ठंडा पानी डालता है। उसके पाँव पर खौलता पानी डाला जाता और जलने के वजह से जो फफोलें निकले उसे फोड़ दिया जाता।
आर्टिकल 14 न्यूज़ पोर्टल को उनके वकील बैंस ने बताते है की २० फ़रवरी को हॉस्पिटल में शिवा ने विस्तार से सब बताया है। जब उन्हें अवैध क़ब्ज़े से सोनीपत जेल ले ज़ाया गया तो वहाँ भी उनका चश्मा नहीं दिया जाता है जबकि उनकी एक आँख की रोशनी बिल्कुल ही नहीं है और दूसरे आँख से बिना चश्मे के देखना मुश्किल होता है। जबकि अरेस्ट करते समय चश्मा साथ ही था। उनके वकील का कहना है कि हरियाणा पुलिस की जाँच रिपोर्ट में न केवल भयानक अनियमितता देखा जा रहा है बल्कि उनके मुवक्किल के मौलिक अधिकारों का हनन भी किया है।
क़ानून विशेषज्ञों के अनुसार, हिरासत में होने वाली हिंसा के ख़िलाफ़ माननीय सप्रीम कोर्ट का सख़्त निर्देश है कि ऐसे मामलों में दोषी पुलिस कर्मियों पर आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए। चूँकि शिव कुमार के साथ हिरासत में हुई हिंसा के सबूत सबके सामने हैं इससे पता चलता है की उनकी रक्षा करने में सरकार पूरी तरह से नाकाम है इसलिए उन्हें जल्द से जल्द रिहा किया जाना चाहिए।