
2009 लोकसभा चुनाव परिणाम आने से तीन दिनों पहले आंध्र प्रदेश पत्रकार संघ द्वारा ” चुनाव में मीडिया रिपोर्टिंग” पर एक सेमीनार आयोजित किया था। इस सेमीनार को सम्बोधित करते हुए प्रेस काउंसिल के चेयरमैन रिटायर्ड जस्टिस जी. एन. रे द्वारा इस पैड न्यूज संस्करण पर बहुत ही गहरी चिन्ता व्यक्त किया जाता है। सेमीनार में मीडिया के नए भ्रष्ट नीति के अस्तित्व और बिजनेस मॉडल पर भी चर्चा होती है।
पत्रकारिता जगत के दिग्गज जैसे स्व श्री प्रभास जोशी, श्री अजीत भट्टाचार्य और कुलदीप नायर इस सेमीनार में सम्मिलित थे। इन सबों ने पेड न्यूज नामक इस अपराधिक प्रक्रिया को चिन्हित करते हुए उसके अस्तित्व पर चिन्ता व्यक्त करते हैं। वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रभास जोशी बताते है कि किस प्रकार लोकसभा चुनाव के दौरान एकपक्षीय कवरेज करवाने के लिए प्रत्याशियों को कई तरह के पैकेज ऑफर किए गए है।
वरिष्ठ पत्रकार स्व प्रभाष जोशी का चुनाव आयोग एवं प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में दर्ज शिकायत
यह विषय को सबसे पहली बार श्री जोशी ने ही सामने लाया था। वे खुद चुनाव आयोग और प्रेस काउंसिल के पास जाकर इस भ्रष्ट खेल को खत्म करने का मांग किए थे। चूंकि उनके कई राजनेताओं से अच्छे संपर्क थे जिनके तरफ से उन्हें लगातार शिकायतें भेजी जा रही थी।
5 नवम्बर 2009 को इस दुनिया को छोड़ कर जाने से पहले जो उन्होंने 28 अक्टूबर 2009 को अपना अंतिम स्पीच दिया था। उन्होंने सेमीनार में अपनी बात रखते हुए कुछ नेताओं का नाम लेते हुए कहा कि इन नेताओं में कुछ ने पैसे देने से साफ मना कर दिया था और कुछ ने उनसे शिकायत की थी कि उनसे स्टोरी करने एवज में पैसे मांगे जा रहे हैं।
इनमें भाजपा के दिग्गज नेता लालजी टंडन, सपा नेता श्री मोहन सिंह, चन्द्रशेखर के समय यूनियन मिनिस्टर रह चुके हरमोहन धवन, हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उनसे निजी बातचीत में बताया कि किस तरह से मीडिया के एजेंट रेट चार्ट के साथ उनसे डील करने के लिए संपर्क किया था। इन शिकायतों को जानकर वे प्रेस काउंसिल और चुनाव आयोग दोनों से लोकतंत्र को बचाने की अपील करते हुए अपनी शिकायत दर्ज करते हैं।
2009 लोकसभा चुनाव के दौरान वे हिन्दी भाषी राज्यों में रिपोर्ट कर रहे थे वहीं उन्हें इस पैड न्यूज के बारे में जानकारी मिली। इसमें कई तरह के पैकेज थे जैसे, अगर उम्मीदवार को कुछ सेंटीमीटर का कॉलम चाहिए जो उसके कैंपेन के बारे में हो या इसके साथ पार्टी में उनके काम को छापना हो , इंटरव्यू के साथ अलग पैकेज, इस तरह के कई पैकेज के साथ रेट कार्ड उम्मीदवारों को भेजा जाता था। इसमें एक चेतावनी भी होती कि अगर वे पैकेज नहीं लेते हैं तो कोई ख़बर नहीं छापा जायेगा।
मीडिया के अवैध वसूली का धंधा
धनबाद के एमपी श्री ए के रॉय के बारे में श्री जोशी बताते हैं कि वहां के एक भी अखबार ने उन्हें नहीं छापा, वे मजदूर और किसानों से जुडे़ पार्टी से सांसद थे। उन्होंने पैकेज लेने से मना कर दिया था।
अटल बिहारी वाजपेई को लखनऊ सीट से हर बार मिले जीत के पीछे एकमात्र लालजी टंडन को माना जाता था। वे श्री जोशी से बताते है, लखनऊ का ऐसा कोई अखबार नहीं है जिसने उनसे डील पक्का करने की कोशिश नहीं की हो। जब उनसे पैकेज के बारे में कहा गया और अगर वे डील नहीं करते तो उन पर कोई स्टोरी नहीं होगी। वे यह सुनकर चौंक गए, ” मेरे इतने साल के लोक सेवा का क्या कोई मतलब नहीं है?” यहां तक कि वैसे मीडिया मालिक जिसे जरूरत पड़ने पर उन्हें उपकृत किया था वे भी उनसे डील किए बगैर छापने से मना कर देता है।
लालजी टंडन अपने सभी जनसभा में जुटे लोगों को उन अखबारों का नाम लेते हुए उनके लिखे पर विश्वास करने से मना करते हैं, जिन्हें पैसे देने से मना किया था।
इसी चुनाव में लालजी टंडन के प्रतिद्वंदी उम्मीदवार ने मीडिया के तीन पैकेज खरीदें थे, पहला पैकेज उनके खिलाफ छपने वाले नकारात्मक खबरों को मैनेज करने के लिए था, यही पैकेज उन्होंने उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी के लिए भी ले रखा था और तीसरा पैकेज अपने पब्लिसिटी के लिए लिया था। अपने बारे में सकारात्मक ख़बर छापने के एवज में उसने तकरीबन एक करोड़ रुपए दिया ताकि वह चुनाव जीत सके, मगर जब चुनाव परिणाम आते है तो लालजी टंडन की जीत होती है। वे चुनाव जीतने के बाद भी जनता से उन अखबारों को बहिष्कार करने की अपील करते रहते है। वे वही लालजी टंडन थे जिसने एक प्रसिद्ध अखबार के मालिक को राज्यसभा की सीट दिलवाया था।
इसी तरह का एक और वाकया उत्तर प्रदेश के सपा नेता श्री मोहन सिंह के साथ भी होता है जब उनसे पब्लिसिटी पैकेज खरीदने को कहा गया और बगैर इसके उन्हें छापने से मना कर देता है। जब उन पर कोई खबर नहीं छापा गया तो वे भी सार्वजनिक रूप से सवाल करते हैं वे उस मीडिया को क्यों पैसे दे जिसके मालिक को उसने बिना एक रुपए लिए राज्यसभा भेजा है।
एक वाकया चंडीगढ़ से चुनाव लड़ रहे श्री हरमोहन धवन के साथ भी होता है, उन्होंने भी पैकेज लेने से साफ इंकार कर दिया था। वे बताते हैं कि उन्होंने सभी के नाम डायरी में नोट कर रखे थे और अपने सभाओं में उनके नाम लेकर कहते की इनमें छपे खबरों पर बिलकुल भी ध्यान न दें।
इस तरह के भ्रष्ट नीति से निपटने में चुनाव आयोग
2009 लोकसभा चुनाव में सभी दलों को एक समान अवसर हो इसके लिए प्रेस काउंसिल ने एक गाइडलाइन जारी किया जो सरकारी संस्था और प्रेस दोनो के लिए था। इस चुनाव के बाद कुछ समाचार कम्पनी में एक बहुत ही चिंताजनक ट्रेंड देखने को मिला, जो दर्शा रहा था कि प्रत्याशियों ने मीडिया को पैसे देकर अपने लिए एक पक्षीय कवरेज करवाया था, इसे पैड न्यूज के नाम से पुकारा जाता है।
पेड न्यूज के खेल में भारतीय कानूनों की धज्जियां उड़ाई जाती रही
अखबार के पाठक या टीवी के दर्शक जिसे स्वतंत्र खबर समझ कर उपभोग कर रहे थे असलियत में वो एक प्रचार होता है। इसके साथ ‘पैड न्यूज’ में होने वाले खर्च का ब्यौरा प्रत्याशियों द्वारा चुनाव आयोग को नहीं दिया जाना, जो कि चुनाव प्रक्रिया नियम 1961 का सीधा उल्लंघन है, साथ ही चुनाव आयोग जनप्रतिनिधि कानून 1951 को नहीं माना है। तीसरा, प्रत्याशियों से मिले पैसे की जानकारी को मीडिया संस्थान द्वारा छिपाया जाता है जो कम्पनी एक्ट 1956 और इनकम टैक्स एक्ट 1961 का मामला बनता है।
इस नए गैर कानूनी बिजनेस मॉडल को अस्तित्व में आने से एक नया सांस्थानिक भ्रष्टाचार का जन्म हुआ जो कि पहले किसी एकाध पत्रकार तक ही सीमित हुआ करता था। इस सांस्थानिक, संगठित भ्रष्टाचार ने भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने का काम किया है। इस नए गैर कानूनी बिजनेस मॉडल के खिलाफ एक बड़े वर्ग ने आवाज भी उठाई, इसमें कई बड़े राजनेता, मीडिया के क्षेत्र में काम करने वाले प्रोफेशनल ने इस अनैतिक काम के खिलाफ चिन्ता एवं दुःख भी व्यक्त करते हैं।
इसे रोकने की दिशा में उठाए गए कदम
6 जुन 2009 को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा लोकतंत्र और जनता के सही सूचना पाने के अधिकार पर छाए खतरे पर ध्यान दिलाते हुए एक स्वतंत्र चुनाव का तकाजा पर चुनाव आयोग को एक प्रस्ताव भेज कर मांग किया जाता है कि चुनाव आयोग के रिटर्निंग अधिकारी द्वारा किसी भी चुनाव से पहले रिपोर्टिंग करने के तरीकों पर नोटिस जारी किया जाए, किसी खास ” न्यूज” के आधार पर उसकी जांच की जाए ताकि उसके पीछे प्रत्याशी और मीडिया संस्थान के बीच हुए डील को उजागर किया जा सके।
कई सेमिनारों और चर्चाओं के बाद प्रेस काउंसिल द्वारा 3 जुलाई 2009 को एक सब–कमिटी का गठन किया जाता है गई जिसमें दो वरिष्ठ पत्रकार प्रांजोय गुहा ठाकुरता और कलीमेकोलन श्रीनिवास रेड्डी को सदस्य बनाया गया।
कमिटी ने “ पैड न्यूज” के खिलाफ बने जांच रिपोर्ट को प्रेस काउंसिल के हाथों सुपुर्द कर दिया जिसे रिलीज करने की तारीख पहले 26 अप्रैल 2010 तय हुई थी मगर कुछ कारणों से इसे आगे बढ़ा दिया गया, जानकारी दी जाती है कि उस रिपोर्ट को एक लार्जर काउंसिल ग्रुप द्वारा देखा जा रहा है।
मुख्य जांच रिपोर्ट के बजाय उसका संशोधित रूप रिलीज करता प्रेस काउंसिल
31 जुलाई 2010 को काउंसिल मेंबर द्वारा बताया जाता है कि इस रिपोर्ट के पब्लिश होने से कई मीडिया संस्थान और पब्लिशिंग हाउस की वर्षो में बनी विश्वसनीयता पर बट्टा लग सकता है जिससे उबर पाना असम्भव हो सकता है इसलिए काउंसिल मेंबर के सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया है कि केवल आंशिक रिपोर्ट प्रकाशित होगा।
हालांकि ये सफाई प्रेस काउंसिल द्वारा एक दिन बाद दिया जाता है क्योंकि 30 जुलाई 2010 को इनके द्वारा जांच कमिटी की रिपोर्ट रिलीज किया जा चुका था। ओरिजिनल रिपोर्ट को रेफरेंस के तौर पर उपलब्ध होने के बारे में बताते है लेकिन जब कुछ पत्रकारों ने इसके लिए संपर्क किया तो ऐसा कोई रिपोर्ट होने से उन्होंने साफ इंकार कर दिया।
असली जांच रिपोर्ट के कुछ प्वाइंट के निकाल कर मुख्य रिपोर्ट को दफन कर दिया गया
इस नए रिपोर्ट के रिलीज होने के बाद दोनो जांचकर्ता सदस्यों ने बताया कि उनके ओरिजिनल रिपोर्ट में शामिल में ऐसे सभी तथ्यों को गायब कर दिया गया जो कई मीडिया घरानों की सीधी संलिप्तता उद्भेदन कर रहा था। भारत के सबसे बड़े मीडिया ग्रुप ( टाइम्स) समेत कई बड़े चैनल” पेड न्यूज” के मामले में शामिल पाए जाते हैं।
इस रिपोर्ट के दफन होने के कारण द हिन्दू के वरिष्ठ संपादक पी साईनाथ समेत कई दिग्गजों द्वारा लगातार कई लेख लिखे जाते है, देश भर में सेमीनार और चर्चे आयोजित किए गए और आखिर कर हमारे देश के कई बड़े नेताओं का ध्यान आकर्षित करने में कामयाबी मिलती है।
यूपीए और विपक्षी दल एनडीए दोनों इसके खिलाफ खड़े हैं
उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी, एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल, कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी, भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, विपक्ष के नेता अरुण जेटली, सीपीआई नेता प्रकाश करात, आंध्र के सीएम के.रोसैय्याह, अभिनेता अमिताभ बच्चन जैसे देश के दिग्गजों ने इस ” पैड न्यूज” के खेल पर चिन्ता व्यक्त किया। इस पर चर्चा को आगे बढ़ाने को लेकर एक आम सहमति बनी ताकि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की स्वतन्त्रता पर बंदिश ना हो।
यूपीए सरकार का सर्वदलीय संसदीय समिति का गठन
2010 में यूपीए सरकार की सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने इस विषय को संसद में रखा जाता है, “पैड न्यूज” विषय पर राज्यसभा में काफी विमर्श भी हुआ जिसमें पक्ष विपक्ष दोनों तरफ के नेताओं ने इसपर रोक लगाने के लिए जांच करने का मांग किया। इसे अमली जामा पहनाया जा सके इसके लिए एक सर्वदलीय संसदीय समिति गठित होता है।
इसे रोकने के लिए सभी दलों ने प्रेस काउंसिल के अधिकार क्षेत्रों में इजाफा किया ताकि एक क्वासी ज्यूडिशियल प्रोसेस से मीडिया संस्थानों को उचित दंड दिया जा सके। इसके साथ ही सभी दल जनप्रतिनिधि कानून 1951 में बदलाव करने के लिए एक साथ राजी होते हैं ताकि चुनाव में होने वाले खर्चे के ब्यौरा को और ज्यादा पारदर्शी बनाया जा सके।
सर्वदलीय समिति की रिपोर्ट 2013 में सदन के पटल पर रखा गया जिसमें निगरानी, पहचान, लेने देन आदि से सम्बन्धित व्यवस्थाओं को जमीन पर उतारने की अनुशंसा की गई।
2014 का सत्ता परिवर्तन और नरेंद्र मोदी का मीडिया मैनेजमेंट
2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद यह जांच रिपोर्ट और अनुशंसा को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, जबकि भाजपा नेता और मौजूदा सरकार में मंत्री रवि शंकर प्रसाद समेत कई भाजपा नेता यूपीए सरकार गठित समिति में शामिल थे और उनके संसद में लाया गए बिल पर उनका भी योगदान था।
नरेंद्र मोदी सरकार को इस विषय पर कभी फिक्र नहीं किया क्योंकि उनके लिए यह एक अवसर था। आज वे उन्हीं मीडिया मालिकों के गले में पट्टा डाल गोद में बिठा रखा है, ऐसे में उनसे उम्मीद करना ही गलत है। जबकि उनके सरकार के मंत्री यूपीए सरकार को इस मुद्दे पर हमेशा घेरते रहे थे।
आज विश्व में भारतीय मीडिया फ्रीडम में 142वा स्थान पर है जो आने वाले कुछ वर्षों में और बुरा होने जा रहा है क्योंकि वर्तमान सरकार के खिलाफ लिखने बोलने वालों के खिलाफ सरकार सारी जांच एजेंसियों को छोड़ कर मुंह बन्द कर देता है। जिनका मुंह बंद नहीं करवा सके तो जेल में डाल दिया जा रहा है और जो इन सब के बावजूद भी चुप नहीं हुए तो उसे गौरी लंकेश के तरह गोली मार दिया जायेगा।