अररिया के पलासी प्रखंड में सोहंदर पंचायत का ये गांव रतवा नदी के किनारे बसा है। 2011 जनगणना के अनुसार लगभग 255 हेक्टयर में बसे इन दोनों गांवों की कुल आबादी 2094 है।


पिछले 70 सालों में लगभग दस बार ये गांव नदी के कटाव में समाते चले गए हैं जो सिलसिला आज भी जारी है।

“यहाँ तक आते आते सूख जाती है कई नदियाँ मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा”
दुष्यंत कुमार के साए में धूप से उद्धृत ये पंक्ति आज के दौर में भी बिल्कुल मौजुं है अब हर किसी को मालूम है कि पानी कहां ठहरा हुआ है।
जिला मुख्यालय से मात्र चालीस किमी और प्रखंड मुख्यालय से केवल 25 किमी की दूरी पर मौजूद इन गांवों के समस्याओं का निवारण कर पाना क्या इतना ही कठिन हैं? नदी के कटाव के कारण लगातार विस्थापन का दंश झेल रहे लोगों के लिए क्या सरकार के पास कोई नीति नहीं है? ऐसा लगता है जैसे इन्हें इस देश का नागरिक ही नहीं माना जाता है।
2019 आम चुनाव का बहिष्कार कर के भी कोई लाभ नहीं हुआ
हर वर्ष होने वाली तबाही से लोगों के अंदर सरकार और उसके नीतियों के खिलाफ अत्यंत आक्रोश का एक रूप 2019 लोकसभा चुनाव में देखने को मिला और मतदान का सामूहिक बहिष्कार किया जाता है। लोगों से बातचीत के दौरान मालूम हुआ कि ग्रामीणों द्वारा इसकी सूचना सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को दी गई थी मगर इसके बावजूद कोई झांकने तक नहीं आया।
उस बहिष्कार का उद्देश्य जानने के लिए मैंने कुछ ग्रामीणों से सवाल किया, उनमें से एक लगभग साठ वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति का कहना था ” जब सरकार के नजर में हम नागरिक ही नहीं है तो फिर वोट किस बात के लिए दें!” वहां मौजूद एक नौजवान ने कहा ” सब नेता को वोट देकर देख लिए जीतने के बाद झांकने नहीं आता है”
नेताओं द्वारा एक साजिश के तहत जनता के अंदर से नागरिकता का बोध समाप्त किया जा रहा है
पिछले कुछ वर्षों में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने जनता को खेमों में बांट दिया है जिसका सबसे ज्यादा नुकसान सिर्फ जनता को उठाना पड़ता है। एक दल विशेष का झंडा थमा कर लोगों के अंदर से उनके नागरिक होने की समझ को एक साजिश के तहत खत्म किया जा रहा है। यही स्थिति इन ग्रामीणों के साथ भी हुआ। हिन्दू बहुल क्षेत्र होने और अपनी दलीय निष्ठा को सार्वजनिक किए जाने के कारण विपक्षी दल के विधायक आसानी से भेद कर लेता है। जिस वजह से उनके समस्याओं के प्रति स्वाभाविक तौर पर दुराग्रह पैदा हो जाता है।
क्या यह केवल एक सड़क का मुद्दा है?
नदी के कटाव में चार बार अपना घर गंवा चुके अजय कुमार दास कहते हैं ” यह केवल एक सड़क का मुद्दा बिल्कुल भी नहीं है, यह हमारे अस्तित्व, विस्थापन, रोजगार के लिए पलायन का मुद्दा है।”

2018 में प्रधानमंत्री ग्राम्य सड़क योजना के तहत पहली बार कोई सड़क निर्माण कार्य पूरा हुआ था। ये सड़क गोसाइंपुर से बुद्धी होते हुए सोहंदर पंचायत के मुख्य हाट से जोड़ रहा था। हालांकि निर्माण कार्य शुरु होने के समय ही नदी के कटाव का रुख स्पष्ट हो चुका था जिस पर कुछ पढ़े लिखे लोगों द्वारा सवाल भी किया गया था। जब किसी प्रकार सड़क बन कर तैयार तो हो गया लेकिन चार महिनें के अंदर वही हुआ जिसका डर पहले भी जताया जा चुका था, रतवा नदी के कटाव में वह सड़क बह जाता है।
व्यवसाय के तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन करते युवा
सालों साल मेहनत कर तैयार किए गए खेतों का नदी में विलीन होने के कारण खेती कर परिवार का पेट पालना लगभग नामुमकिन हो चुका है। ऐसे स्थिति में रोजगार के लिए बड़े शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर है। ग्रामीणों से बातचीत के दौरान बताते हैं कि इन गांवों में केवल बुजुर्ग या महिलाएं रह गई है या फिर वे है जो मजदूरी करने के लिए शारीरिक रूप से अक्षम है।
इसका समाधान क्या है? क्या महानंदा बेसिन योजना से इसे कोई लाभ मिलेगा?
इस इलाके के बुद्धिजीवियों के विचार जानने के लिए उनसे सवाल किया गया तो ऐसे कई विचार निकल कर सामने आए हैं जिस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। सोहंदर पंचायत के अरविंद कुमार ( इंजीनियर) का मानना है कि इस समस्या का समाधान स्थानीय स्तर पर किया जाना नामुमकिन है इसलिए इस पर विशेषज्ञों की एक टीम गठित कर आगे बढ़ना चाहिए।
बुद्धी प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक जनार्दन मंडल का कहना है ” चूंकि यह एक नदी और उसके व्यवहार से जुड़ा मामला है इसलिए नदियों और उसके व्यवहार पर रिसर्च कर चुके वैज्ञानिकों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए”
पटना यूनिवर्सटी से पढ़ाई कर शिक्षा प्रदान कर रहे कुमार रंजीत के अनुसार “पूर्व गृह राज्य मंत्री महरूम जनाब तस्लीमुद्दीन ने इस समस्या से निजात दिलाने के लिए महानंदा बेसिन योजना का रूपरेखा तैयार किया था, जिसे सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल रखा है। उस योजना को धरातल पर लाए जाने की जरूरत है”