शुरुआत बिहार से करना सही रहेगा जहाँ इस साल 3 अप्रैल से सरकार ने पुर्ण शराबबंदी का घोषणा किया और आनन-फानन मे ऐसे कड़े कानून बनाए गए जिसके दायरे मे बहुत सारे निर्दोषो को भी जेल की हवा खानी पड़ रही है। शराबबंदी की घोषणा करते वक्त मुख्यमंत्री ने महिलाओ के हवाले से कहा ‘ वर्तमान सरकार की शराब नीति ने महिलाओ मे काफी आक्रोश पैदा कर दिया था’ कुशल राजनीतिज्ञ श्री नीतिश कुमार को जीविका के एक कार्यक्रम के दौरान महिलाओ का रोष समझने मे देर न लगी और उन्होने उसी मंच से वादा किया कि, सरकार अगर फिर से सत्ता मे आई तो शराबबंदी सरकार का पहला निश्चय होगा। इस वादे के फलस्वरूप बिहार चुनाव के दौरान हर बूथ मे महिलाओ ने जमकर वोट दिया, और नितीश कुमार ने फिर से कुर्सी संभालते ही अपने वादे को यथार्थ मे परिवर्तित करने मे बिल्कुल भी देर नही लगाया।
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अब थोड़ा इस शराबबंदी का पोस्टमार्टम किया जाना चाहिए
- सन् 1977-78 मे भी शराबबंदी की एक नाकाम कोशिश की गई थी, पर किसी कारणवश वह लागू नहीं हो पाया।
- सरकार के इस कदम से राजस्व का नुकसान लगभग 4000 ₹ करोड़ का होगा वह भी ऐसे वक्त मे जब केन्द्र सरकार के तरफ से मिलने वाला फंड ऊँट के मुँह मे जीरा के समान साबित हो रहा है।
- मुख्यमंत्री जी का कहना है कि राजस्व का घाटा कोई बड़ा मुद्दा नही है, सरकार का मतलब सिर्फ राजस्व कमाना नही है। समाज मे पड़ रहे दुष्प्रभाव के आगे घाटा मुनाफा से उपर उठ कर सोचना होगा। माननीय मुख्यमंत्री जी लगे हाथ यह भी बतला देते कि इस दुष्प्रभाव के लिए जिम्मेदार भी आप खुद है।
- अपने पिछले एक दशक के कार्यकाल मे शराब के धंधे के लिए उदारवादी नीति अपनाया गया था, जिसके तहत पिछले साल तक 6000 देशी+विदेशी शराब के नए लाइसेंस जारी किए गए थे।
- 2005-06 मे जहाँ राजस्व मात्र 320 करोड़ था वही 2014-15 मे 3665 करोड़ मौजूदा सरकार के उदारवादी नीति को समझने का बेहतरीन तरीका है।
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- सरकार बहादुर ने मौजूदा घाटा को स्थिर करने के लिए टैक्स मे बेतहाशा वृद्धि कर दी गई है। इसे इस तरह समझा जा सकता है, सेल टैक्स का लक्ष्य 29730 करोड़ निर्धारित किया गया है जो कि वर्तमान मे मात्र 13700 करोड़ है। सरकार का फोकस अब टैक्स चोरी, वैट चोरी को रोकने पर होना चाहिए, न कि शराबबंदी का राग अलापने मे।
- पुर्ण शराबबंदी की सबसे बड़ी समस्या पड़ोसी राज्य और पड़ोसी देश नेपाल के वजह से हो रही है। जबतक इन राज्यो से सहयोग न मिले तबतक पुर्ण शराबबंदी की बात लफ्फाजी मात्र है।
नितीश कुमार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छुपा नही है,और 2019 लोकसभा चुनाव तक बिहार माॅडल को भूनाने का हर संभव प्रयास भी जगजाहिर है।